Thursday, June 15, 2017

धन्य है बिहार के लालू..........

धन्य है बिहार के लालू...
धन्य है उनके नेता...
धन्य है बिहार के पत्रकार...
इन दिनों बिहार के दो यादव नेताओं का पूरे देश में धूम है। एक है राजद सुप्रीमो लालू यादव और दूसरे है राजद के ही विधायक नीरज यादव। दोनों की समानता यह है कि दोनों पत्रकारों से ही भीड़ गये है। लालू यादव रिपब्लिक टीवी के पत्रकारों को उनकी औकात बता रहे है, वहीं नीरज यादव तो प्रभात खबर के पत्रकार को गालियों से नवाज दिया है।
अगर इनसे संबंधित समाचारों की बारीकियों को देखें तो रिपब्लिक टीवी के पत्रकार लालू के समक्ष शेर की तरह भिड़ते नजर आ रहे है, वहीं प्रभात खबर का पत्रकार नीरज यादव के समक्ष मिमियाता नजर आ रहा है, प्रभात खबर के पत्रकार का नीरज यादव के समक्ष मिमियाने से एक बात स्पष्ट हो रही है कि प्रभात खबर के पत्रकार ने कुछ गड़बड़ियां की है, नहीं तो वह उक्त नेता के आगे मिमिया नहीं रहा होता, पर दूसरी ओर रिपब्लिक टीवी के पत्रकार का निर्भीकता के साथ लालू से भिड़ना और उनसे उन्हीं की भाषा में बात करना, सब कुछ सिद्ध कर देता है कि अब पहलेवाली बात नहीं रही। न तो लालू 1990 वाले लालू है और न उनकी अब वैसी गरिमा है। वह भी इसलिए कि, 1990 के लालू पर भ्रष्टाचार का कोई दाग नहीं था, वह गरीबी से निकले थे, और बिहार का सत्ता संभाला था, वह भी अपने दम पर, लेकिन इधर के कुछ सालों में, तो वे भ्रष्टाचार के साक्षात प्रतिमूर्ति बन गये है, इधर भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी द्वारा लगातार किये जा रहे राजनीतिक हमले ने उन्हें बेचैन कर दिया है। स्थिति ऐसी है कि इनसे बचने के लिए इनके पुत्रों ने तंत्र-मंत्र का भी सहारा लेना शुरु कर दिया है, पर इनसे भी इनकी रक्षा होगी, कहां नहीं जा सकता।
नीतीश कुमार तो ऐसे भी, मस्ती में है, वे जानते है कि लालू पर जितना राजनीतिक हमला अथवा भ्रष्टाचार का शिकंजा कसेगा, उनकी कुर्सी उतनी ही सुरक्षित रहेगी, क्योंकि लालू का ज्यादातर ध्यान अपनी राजनीतिक छवि को सुधारने और भ्रष्टाचार के आरोपों से मुक्ति पाने पर केन्द्रित रहेगा और नीतीश बहुत ही आसानी से ये पंचवर्षीय पारी भी खेल जायेंगे और अपनी छवि भी बिहार और बिहार के बाहर बना लेंगे. यह कहकर कि लालू जैसे भ्रष्टों के संग रहकर भी, उन पर कोई दाग नहीं है, इसी को तो राजनीति कहते है, पर लालू और नीरज ने जिस प्रकार से बिहार के सम्मान पर दाग लगाया है, वह बताता है कि आनेवाले समय में बिहारियों का गिन्जन होना तय है, क्योंकि जैसे उनके नेता होंगे, बिहारियों की छवि बिहार के बाहर, तो वैसे ही बनेगी। ऐसे भी जहां मूर्ख ट़ॉप करते हो, जहां महिला प्रदर्शनकारियों के साथ पुलिस खूलेआम बदतमीजी करता हो, सब कुछ बता रहा है कि बिहार की प्रतिष्ठा बाहर मे कैसी बन रही है और ले-देकर बिहार के कुछ पत्रकारों की मिमियानेवाली कला ने तो यहां के पत्रकारों के कुकृत्यों को भी सामने लाकर खड़ा कर दिया है. भाई नेताओं से लाभ भी लेंगे और उनकी धज्जियां भी उडायेंगे तो गाली सुनना ही पड़ेगा, भला इतनी बात कथित पत्रकारों को समझ नहीं आती।

Wednesday, June 14, 2017

यार हमारी बात सुनो.......

भोर सिंह ने एक-दो छापेमारी क्या कर दी? मिलावटखोरों को क्या पकड़ लिया, अपने रांची शहर में हर तरफ ईमानदार ही ईमानदार नजर आने लगे हैं अर्थात् हर क्षेत्र से बेईमानों की टीम, ईमानदार बनकर भोर सिंह की जय-जयकार कर रही है, उसमें अखबार के संपादक व पत्रकार भी शामिल हो गये, ये वहीं पत्रकार और संपादक है, जो कभी भोर सिंह यादव को ही कटघरे में खड़ा कर दिया था, यह कहकर कि अहले सुबह भी कहीं हेलमेट जांच किया जाता है, ये अलग बात है कि जब चारो तरफ उनकी थू – थू होने लगी तो उन्हें ख्याल आया कि वे गलत पर है, यहीं नहीं  लगातार कश्मीर को पाकिस्तान का अंग बतानेवाले अखबार अब मिलावटखोरी पर संपादकीय लिख रहे है, सेक्स-कमजोरी के नाम पर युवाओं को दिग्भ्रमित करनेवाले विज्ञापन को छापने वाले समाज हित की बात कर रहे है...
भाई एक बात बता दूं, जैसे तेल, दूध और बीज में मिलावट करनेवालों को मत छोड़िये, उसी प्रकार युवाओं को दिग्भ्रमित करनेवाले समाचार और विज्ञापन छापनेवाले अखबारों को भी मत छोड़िये, क्योंकि ये भी बराबर के अपराधी है...
मैं तो सीधे यहीं कहूंगा ऐसा लिखनेवाले और ऐसा बोलनेवाले तथा आंदोलन करनेवालों को, कि वे फिल्म रोटी का गाना सुने...
गाने के बोल है...
यार हमारी बात सुनो...
ऐसा एक बेईमान सुनो...
जिसने पाप न किया हो, जो पापी न हो...
एक बात और,
कानून को अपना काम करने दीजिये, कानून अपना काम करेगा। एक बात और, दुनिया में दो प्रकार के कानून है – एक कानून जो व्यक्ति बनाया है, और दूसरा कानून जो प्रकृति का है।
आप मनुष्य के द्वारा बनाये गये कानून को धोखा दे सकते है, पर ईश्वर के बनाये गये कानून को धोखा नहीं दे सकते, इसलिए सभी अपना-अपना काम करें, ईमानदारी बरतें और झारखण्ड का नाम रोशन करें।
आज तो मैं ये भी देख रहा हूं कि भोर सिंह को लेकर उनकी जाति के लोग भी आंदोलन पर उतर आये है, वे नगर विकास मंत्री का पुतला दहन कर रहे है, भाई भोर सिंह सिर्फ यादवों के एसडीओ थे क्या?  अब जिस जाति का एसडीओ बनेगा, उस जाति के लोग उस एसडीओ का जिम्मा लेंगे क्या?  अरे भाई, वो एसडीओ है, उसे भी डीडीसी, डीसी और पता नहीं क्या-क्या?  बनना है, और बनने की इच्छा रखता है, क्या वह आपके लिए सदा के लिए एसडीओ ही बनकर रह जाये? ये क्या अंधेरगर्दी है भाई? जिसको देखो, हर बात में जातीयता घूसेर दे रहा है, अच्छे लोगो की सराहना थोड़ा सभी जाति के लोग करें, तो अच्छा है। ये एक ही जाति के लोग प्रदर्शन और पुतला दहन करने की सोच रखेंगे तो इस राज्य का क्या हालत होगा?  क्या हम सचमुच आगे बढ़ रहे है, या नीचे जा रहे है? हद कर दी है, सबने। हर जगह राजनीति, भोर सिंह का स्थानान्तरण हो गया तो गलत, भोर सिंह का स्थानान्तरण नहीं हुआ तो गलत,
भोर सिंह के समय का अधिकारी, सब का प्रमोशन हो गया और इसके साथ ही भोर सिंह का भी हो गया तो भी गलत और नहीं हुआ तो भी गलत। ऐ भाई, ऐसे में तो, हम मिलावटखोरी वाला सामान नहीं भी खायेंगे, तब भी ब्रेन हेमरेज हो जायेगा...

Tuesday, June 13, 2017

रांची में ऐसे पत्रकारिता हो रही हैं................

कल की ही बात है...
मैं रांची स्थित भाजपा मुख्यालय में था, नगर विकास मंत्री सी पी सिंह, भाजपा मुख्यालय के भूतल स्थित किसान प्रकोष्ठ में बैठे थे, उनके चाहनेवालों की भीड़ चारो ओर से उन्हें घेरे थी, तभी जीटीवी का कैमरामैन पहुंचा और सी पी सिंह को एक बाइट देने को कहा।
सी पी सिंह – किस संदर्भ में बाइट लेना है।
जीटीवी का कैमरामैन – अरे वहीं हत्या हो रहा है, न देश में, उसके बारे में।
सी पी सिंह – कौन सी हत्या, कैसी हत्या।
जीटीवी का कैमरामैन – अरे वहीं, किसान सब हत्या कर रहा है न।
सी पी सिंह – अरे भाई किसान किसी की हत्या क्यों करेगा? आप बताइये न कि आपको किस संदर्भ में बाइट चाहिए, मंदसौर पर चाहिए या महाराष्ट्र वाले पर।
जीटीवी का कैमरामैन – अरे भाई हम नहीं जानते, आप ऐसा करिये कि हमारे ब्यूरो चीफ का नंबर है न, उन्हीं से पूछ लीजिये, कि वो क्या बाइट चाहते है? हमको क्या मालूम? अरे हमें क्या? हमलोगों को भेज दिया जाता है और हमलोग चले आते है।
सी पी सिंह – फोन लगाओ जी।
अचानक फोन लगाया जाता है, जीटीवी के ब्यूरो चीफ को, उधर से प्रश्न बताया जाता है और लीजिये, नेता जी तैयार बाइट देने के लिए।
यानी इस प्रकार चल रहा है झारखण्ड में पत्रकारिता। यह केवल एक संस्थान की बात नहीं, बल्कि हर जगह की है, अब कोई भी रिपोर्टर, संवाददाता या ब्यूरोचीफ स्वयं समाचार संकलन करने के लिए नहीं निकलता, उसे लगता है कि वो समाचार संकलन को निकलेगा तो फिर उसकी इज्जत चली जायेगी, वो रिपोर्टर का काम करने के लिए नहीं बना है, वो तो पत्रकारिता का जगदगुरु शंकराचार्य बनने के लिए पैदा हुआ है, और वो यह बनकर रहेगा।
पूर्व में ऐसी बात नहीं थी, रिपोर्टर और कैमरामैन साथ-साथ चला करते थे, पर अब ये प्रथा पूरी तरह समाप्ति की ओर है, रिपोर्टर या संवाददाता या ब्यूरोचीफ अब घर में रहता है और कैमरामैन सारा काम करके चल आता है, बाद में रिपोर्टर, संवाददाता या ब्यूरोचीफ कार्यालय जाता है, और बना-बनाया उसे जब समाचार मिलता है, तब उस समाचार को अपना नाम देकर वह नोएडा या अपनी मनमुताबिक जगहों पर समाचार भेज देता है और मुख्यालय में बैठा व्यक्ति रिपोर्टर, संवाददाता या ब्यूरोचीफ की खूब वाह-वाही करता है। कहीं-कहीं तो कैमरामैन वो सारा काम कर देता है, जिसकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते, यानी काम करे कैमरामैन, नाम हो किसी ओर का।
यहीं नहीं आप यह भी जान लें कि आजकल रिपोर्टर, संवाददाता या ब्यूरोचीफ से भी ज्यादा लोग कैमरामैन को जानने और सम्मान देने लगे है, क्योंकि लोग जानते है कि यहीं सर्वेसर्वा है, ये विजूयल लेगा तभी दिखेगा, रिपोर्टर की कोई औकात नहीं कि उसके द्वारा लाये गये विजूयल को कोई काट दे, क्योंकि जो विजूयल वो लेगा, काटेगा, वहीं न जायेगा।
इधर देखने में आ रहा है कि ज्यादातर राजनीतिक दलों के नेता, विभिन्न प्रशासनिक, सामाजिक व धार्मिक संगठनों के लोग रिपोर्टरों, संवाददाताओं, व ब्यूरोचीफ की जगह इनके कैमरामैनों के मोबाइल नंबर रखे होते है, और समय-समय पर उनके द्वारा आयोजित कार्यक्रमों की जानकारी देते रहते है, क्योंकि वे जानते है कि कैमरामैन के पास ही हमेशा कैमरा होता है और वो चाहेगा, न्यूज चलेगा, इसलिए वे इन्हीं लोगों से ज्यादा सम्पर्क में रहते है, समय-समय पर इनकी आवभगत भी खूब होती है। यानी रिपोर्टर, संवाददाता या ब्यूरोचीफ से ज्यादा सर्वाधिक लोकप्रिय गर कोई है तो वह है कैमरामैन।
स्थिति ऐसी है कि इन्हीं सभी कारणों से विभिन्न चैनलों के मालिक या संचालनकर्ता अब रिपोर्टर, संवाददाता या ब्यूरोचीफ की जगह सिर्फ कैमरामैन की बहाली कर रहे है, क्योंकि वे जान चुके है कि ये रिपोर्टर, संवाददाता या ब्यूरोचीफ कुछ नहीं करते, केवल ये दबंगई करते है, इसलिए अब ज्यादातर प्रमुख चैनल कैमरामैनों की बहाली कर रहे है, रांची में बहुत सारे ऐसे राष्ट्रीय चैनल है, जहां केवल कैमरामैन है, पर वे स्वयं को संवाददाता और ब्यूरोचीफ कहने में गर्व महसूस करते है, जो सफेद झूठ के अलावा कुछ भी नहीं है।

Monday, June 12, 2017

रघुवर सरकार के प्रति महिलाओं में गहरा आक्रोश........

झारखण्ड की महिलाओं के सपने पर वित्त विभाग ने लगाया ग्रहण...
मुख्यमंत्री रघुवर दास द्वारा झारखण्ड की महिलाओं को दिखाया गया सपना दूर की कौड़ी...
अगर महिलाओं को दिखाये गये सपने नहीं पूरे हुए तो मुख्यमंत्री रघुवर दास को इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है...
राज्य के महिलाओं में गहरा आक्रोश...
याद करिये, 3 मई 2017, झारखण्ड के मुख्यमंत्री ने घोषणा कर दी, कि अब राज्य में महिलाओं को मुफ्त रजिस्ट्री की सुविधा मिलेगी।
राज्य में महिलाओं के नाम जमीन जायदाद खरीदने पर रजिस्ट्री के लिए स्टाम्प और रजिस्ट्रेशन फीस नहीं लिये जायेंगे। मात्र एक रुपये के टोकन स्टाम्प पर महिलाओं को फ्री रजिस्ट्रेशन किया जायेगा। मुख्यमंत्री रघुवर दास के इस घोषणा को महिलाओं के सशक्तिकरण के क्षेत्र में एक क्रांतिकारी कदम बताया गया था, राज्य के सभी दलों तथा महिला संगठनों ने मुख्यमंत्री रघुवर दास के इस कदम की भूरि-भूरि प्रशंसा कर दी थी, पर जब से इस पर वित्त विभाग ने अपनी आपत्ति दर्ज करायी है, राज्य की महिलाओं को लग रहा है कि उनके सपनों पर कुठाराघात किया गया है...
हो सकता है कि इसका खामियाजा मुख्यमंत्री रघुवर दास और उनकी पार्टी को आनेवाले चुनाव में भुगतना पड़ जाये। सूत्र बताते है कि स्थिति ऐसी है कि अगर ऐसा होता है तो महिलाओं का कोपभाजन रघुवर दास को बनना पड़ सकता है।
कुछ ये भी कहते है कि...
बिना बिचारे जो करै, सो पाछे पछताय।
काम बिगाड़े आपना, जग में होत हसांय।
कहीं ऐसा नहीं कि अविचार पूर्वक किये गये मुख्यमंत्री के इस घोषणा से मुख्यमंत्री रघुवर दास की किरकिरी हो जाये।
बताया जाता है कि जिस दिन मुख्यमंत्री रघुवर दास ने इस बात की घोषणा की थी, उसी वक्त से भू-राजस्व विभाग सक्रिय हो उठा था, तथा इस घोषणा को मूर्त्तरुप देने, तथा कैबिनेट से पास कराने के लिए तैयार किये गये प्रस्ताव को विधि विभाग को भेजा, जिसे विधि विभाग ने मंजूरी दे दी, इसके बाद यह प्रस्ताव वित्त विभाग को भेजा गया, जिस पर वित्त विभाग ने अपनी असहमति प्रकट कर दी, वित्त विभाग का कहना है कि ऐसा करना राज्यहित में नहीं है, अच्छा रहेगा कि महिलाओं की श्रेणी निर्धारित की जाय, नहीं तो आनेवाले समय में राजस्व की भारी क्षति होगी, और ये राज्य के विकास में घातक होगा।
हालांकि वित्त विभाग द्वारा आपत्ति दर्ज कराने के बाद इसे नये सिरे से लागू करने पर सरकार विचार कर रही है, पर जिस प्रकार से वित्त विभाग ने आपत्ति दर्ज करायी है और इसे लागू करने में देर हो रहा है, राज्य की महिलाओं में आक्रोश बढ़ता जा रहा है, साथ ही मुख्यमंत्री रघुवर दास के प्रति महिलाओं में नकारात्मक छवि बनती जा रही है, अगर ऐसा हुआ तो अंततः भाजपा का राज्य में पुनः सत्ता में आना, एक तरह से असंभव हो जायेगा...
क्योंकि आधी आबादी को नाराज करना, राज्य सरकार के लिए घातक हो जायेगा, हालांकि सूत्र बताते है कि राज्य सरकार नहीं चाहेगी कि वह राज्य की आधी आबादी को नाराज करें, जल्द ही एक-दो सप्ताह में इस पर निर्णय ले लिये जायेंगे, क्योंकि इस प्रकरण से पूरे राज्य में जमीन की रजिस्ट्री प्रभावित हो चुकी है, इसलिए जल्द इसमें फैसले लिये जाने की संभावना है।

Saturday, June 10, 2017

बहुत हो चुका......

बहुत हो चुका...
आंदोलन अथवा रैली के नाम पर किसी भी संगठन को गुंडागर्दी करने की इजाजत नहीं दी जा सकती...
गर इन गुंडागर्दी पर जल्द रोक नहीं लगा तो झारखण्ड हाथ से निकल जायेगा...
हालात नार्थ-ईस्ट जैसी हो जायेगी...
कुछ धार्मिक संगठन ऐसी स्थिति लाने की कोशिश कर रहे है, जिससे राज्य में रहनेवाले अन्य समुदायों की तकलीफें बढ़ रही हैं...
ऐसे समय में, राज्य सरकार का पहला और अंतिम दायित्व होना चाहिए कि वह राज्य की जनता को यह विश्वास दिलायें कि राज्य में अमन और शांति है, और इस अमन व शांति को कायम रखने के लिए सरकार वचनवद्ध है... लेकिन वर्तमान में, जो स्थितियां दिखाई पड़ रही है, ठीक इसके विपरीत है...
कल जो कुछ रांची की सड़कों पर देखने को मिला, वह पुलिस प्रशासन और राज्य सरकार की निष्क्रियता को दर्शाता है, और इसे इन दोनों को स्वीकार भी करना चाहिए...
कल एक संगठन ने रैली बुलाई और आपको पता नहीं चला, ये बताता है कि आपका खुफिया संगठन पूर्णतः फेल है। आश्चर्य इस बात की है कि लोग खूंटी से चलकर, रांची पहुंच गये और आपके पुलिस प्रशासन को भनक तक नहीं मिली, इससे बड़ी शर्मनाक की बात और क्या हो सकती है?
कहां गये भोर महाशय, जो विहिप कार्यालय में बिना बुलाये पहुंच जाते है, उन्हें हिदायत देते है, और इतनी बड़ी घटना रांची की जनता के साथ होती है और उनको भनक तक नहीं मिली...
ये सारी घटनाएं बता रही है कि राज्य में स्थिति को खराब करने में प्रशासन के कुछ लोग भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे है, क्या हम माने कि जिस तरह बच्चा चोरी अफवाह मामले में सरायकेला खरसावां के डीसी-एसपी को निलंबित किया गया, इस कल की घटना के जिम्मेदार पुलिस व प्रशासनिक अधिकारियों को भी दंड दिया जायेगा।
कमाल है, कल भगवान बिरसा मुंडा का शहादत दिवस था और ये बिरसा के नाम पर आंदोलन और उलगुलान की बात करनेवाले बिरसा और झारखण्ड के ही अमर शहीदों के चित्रों पर लाठी बरसा रहे थे, ये गुस्सा बताता है कि ये आंदोलन गलत रास्ते की ओर बढ़ रहा है, इसका मकसद राज्य की जनता को बताना है कि वे उनके गुलाम है, उनके रहमोकरम पर है।
कमाल है, रैली आयोजित करनेवाले बतायें कि
उनके लोगों ने अरगोड़ा में पुलिस से भिड़ने की कोशिश क्यों की?  वे रैली में शामिल होने आये थे या पुलिस से भिड़ने।
हरमू बाइपास में उत्पात क्यों मचाया, तोड़-फोड़ क्यों की, इसका मतलब क्या है?
मोदी फेस्ट में शामिल लोगों ने उनका क्या बिगाड़ा था, जो उनके साथ दुर्व्यवहार किया?
बिरसा मुंडा समेत अन्य अमर शहीदों के पोस्टर-होर्डिंग्स क्यों फाड़ें, इन अमर शहीदों ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा था?
कुछ सवाल पुलिस प्रशासन से भी...
ये रैली खुंटी से रांची तक पहुंच गई और आप कहते है कि, आपको मालूम नहीं, तब तो भाई मैं यहीं कहूंगा कि आपलोगों को ईमानदारी से अपने पद से इस्तीफा दे देना चाहिए, जब हम राम भरोसे इस राज्य में है, तो फिर आप जैसे पुलिसकर्मियों की यहां क्या जरुरत है?  जैसे राम जी रखेंगे, वैसे रह लेंगे...
और अब सवाल मुख्यमंत्री रघुवर दास से...
आपको नहीं लगता कि पिछले तीन-चार महीनों से एक सुनियोजित साजिश के तहत राज्य को अस्थिर करने का षडयंत्र चल रहा है और इसमें आप ही के प्रशासनिक अधिकारी ही ज्यादा धमाल मचा रहे है, वहीं प्रशासनिक अधिकारी जिनसे आप सलाह लेते है और समय-समय पर उनकी पीठ भी ठोंकते है, और मैं जिन्हें कनफूंकवा के सिवा दूसरा कुछ नहीं कहता हूं...
अंतिम बात...
आप समझे या न समझे, पर इतना जरुर कहूंगा कि किसी को भी इस राज्य को अस्थिर करने और यहां की शांतिप्रिय जनता को अशांत करने का अधिकार नहीं है...
हमें लगता है, आप जल्द समझें तो अच्छा, नहीं तो राज्य की जनता देख रही है... वो उचित समय पर निर्णय स्वयं ले लेगी, हमें पूर्ण विश्वास है...

Thursday, June 8, 2017

भोर महाशय सावधान.................

भोर महाशय सावधान...
आप राजनीति के शिकार हो रहे है...
दुनिया में जब भी कोई व्यक्ति जो समाज व देश हित में अच्छा काम करता है, और जब वह राजनीति का शिकार होता है, तब सर्वाधिक नुकसान जनता और उस व्यक्ति का होता है, जो बेहतर काम कर रहा होता है...
यह मैं इसलिए लिख रहा हूं कि पहली बार एक अधिकारी रांची को मिला, जिसने राजधानीवासियों में प्रशासन के प्रति विश्वास जगाया है, लोगों को लगा है कि यह व्यक्ति मेरा नहीं, हमारा है, ऐसे मैं कुछ स्वार्थी राजनीतिक तत्व इसका सियासी फायदा लेने से नहीं चूक रहे...
वे तरह-तरह के हथकंडे अपना रहे है, ताकि इसका सीधा फायदा उन्हें राजनीतिक लाभ के रुप में प्राप्त हो...
ये सारे राजनीतिक दल से जुड़े लोग अब सामाजिक कार्यकर्ता के रुप में स्वयं को प्रतिष्ठित कर, आप के प्रति अपनी निष्ठा दिखा रहे है, ताकि आनेवाले समय में वे जनता के बीच में एक सच्चा और अच्छा व्यक्ति स्वयं को दिखा सकें।
ये आजकल एसडीओ कार्यालय जाकर, आपको बुके दे रहे है, कोई मार्निंगवाक के बहाने पैदल मार्च कर रहा है और अपनी राजनीतिक रोटी सेंक रहा है, जबकि सामान्य जनता को इससे कोई लेना देना नहीं।
मैंने स्वयं देखा कि 5 जून को मोराबादी मैदान में जदयू का नेता, मार्निंग वाक के बहाने पैदल मार्च में भाग लिया और आप के समर्थन में भाषण देने लगा। एक-दो दिन पहले एक भाकपा माले नेता को देखा कि वह भी सामाजिक कार्यकर्ता के रुप में आपको अपना नैतिक समर्थन देने पहुंच गया। ये दो उदाहरण काफी है कि भोर सिंह यादव को लेकर राजनीतिक रोटियां सेंकी जा रही है।
दूसरी ओर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद को रांची विश्वविद्यालय कार्यालय परिसर में जायज मांगों को लेकर उन्हें धरना-प्रदर्शन करने से रोकना और विश्व हिन्दू परिषद के कार्यालय में जाकर उन्हें अपना कार्य करने से रोकना यह भी कोई अच्छा संदेश नहीं दे रहा है। आपका काम कानून-व्यवस्था को ठीक रखना है और इसमें जो कोई अड़ंगा लगाये, उसे पकड़िये और कानून के तहत सजा दिलवा दीजिये, सबका दिमाग ठंडा हो जायेगा, पर किसी को मिले लोकतांत्रिक अधिकार पर हमला करने की छूट तो किसी को नहीं, क्योंकि कुछ सवाल अब लोगों के दिमाग में स्वतः उपजने लगे है...
सवाल है, क्या आपके समर्थन में जिन लोगों ने मोराबादी मैदान में पैदल मार्च निकाला, क्या उनलोगों ने इसके लिए प्रशासन से आदेश लिया था? और जब आदेश लिया ही नहीं तो फिर उस पैदल मार्च में एक जदयू नेता ने किस हैसियत से भाषण दिया और उन पर क्या कानूनी कार्रवाई हुई?
ऐसा तो नहीं कि कोई व्यक्ति या संस्थान प्रशासनिक व्यक्ति के पक्ष में कोई आंदोलन करें तो उसे छूट और बाकी लोग करें तो उन्हें कानून का डंडा दिखाकर चुप करा दिया जाय।
ये बातें, मैंने इसलिए लिखा है कि आप पर लोगों को बहुत भरोसा है, और इसमें केवल जदयू, कांग्रेस, भाकपा माले ही नहीं, बल्कि और भी जितने दल है, या अच्छे लोग है, या संस्थान है, वह आपको पसंद कर रहे है, कृपया आप इस सम्मान के झूठे लालच में नहीं पड़े।
सम्मान क्या होता है? जरा इस आदिवासी महिला का दास्तान सुनिये...
वह प्रतिदिन रांची के मेन रोड स्थित महावीर मंदिर में पत्तल बनाने का काम और बेचने का काम करती है, अचानक जब बजरंगियों का हुजूम देखा और इधर उसका विरोध करनेवाले एक समुदाय की तैयारी देखी, तो वह कांप गयी, वो सोचने लगी कि वह घर कैसे जायेगी? अगर कुछ हुआ तो? पर आपकी व्यवस्था देख, प्रसन्नचित्त वह घर गयी,  उसके मन में उपजा भय समाप्त हुआ। अब जरा सोचिये, जब वह घर पहुंची होगी, तो आपको वह कितनी दुआएं दी होगी, यह समझने की आवश्यकता है, आपको ऐसे ही दुआओं की आवश्यकता होनी चाहिए, न कि झूठी सम्मान और झूठे समर्थन की। बस आप अपना काम करते रहिये, लोग मुक्त कंठ से आपको दुआएं दे रहे है, पर हां, याद रखियेगा...
जीवन में ईमानदारी जरुरी है, न कि राजनीति... 

Wednesday, June 7, 2017

निदेशक, आइपीआरडी, झारखण्ड का कमाल देखिये.........

जी हां, निदेशक, आइपीआरडी, झारखण्ड का कमाल देखिये...
इन्होंने पिछले तीन महीनों से एक भी होर्डिंग डिजाइन्स विभागीय वेबसाइट पर नहीं डलवाये है, जिसके कारण राज्य के विभिन्न जिलों में एक भी विभागीय होर्डिग्स जो राज्य सरकार द्वारा किये जा रहे विकासात्मक कार्य की जानकारी जनता को देते है, राज्य के किसी भी जिले में नहीं दिखाई पड़ रहे है...
एक जिला जनसम्पर्क अधिकारी ने निदेशक को याद दिलाया है, वे इस ओर ध्यान दें, आश्चर्य है कि निदेशक ने स्वीकार किया है कि यह सत्य है, वे इस ओर ध्यान देते है, पर आज तक इस ओर उनका ध्यान नहीं गया है।
आश्चर्य इस बात की है कि उक्त जिला जनसम्पर्क अधिकारी ने निदेशक को उनके काम याद दिलाये है, पर निदेशक का अभी ज्यादा ध्यान इस ओर न होकर, उन्हें खुश करनेवाले अधिकारियों और संस्थानों पर है, वे इधर आइपीआरडी के एक बदनाम अधिकारी पर इतने खुश है कि सारा काम आइपीआरडी के उस बदनाम अधिकारी को ही सौंप रहे है, नतीजा पूरा विभाग बदनामी की ओर अग्रसर है।
स्थिति ऐसी है कि मुख्यमंत्री जनसंवाद केन्द्र चलानेवाले संस्थान पर, जिस पर गंभीर आरोप वहीं पर कार्यरत महिलासंवादकर्मियों ने लगाया, उसे फिर से देने के लिए सारी तैयारियां पूरी कर ली गयी है। अब केवल टेंडर की औपचारिकता मात्र बाकी है। आपको आश्चर्य होगा कि मुख्यमंत्री जनसंवाद केन्द्र उक्त संस्थान को सौपने के लिए निदेशक ने जो आनन-फानन में टेंडर निकलवाये थे, उसे देखकर भी आइपीआरडी में चल रहे गोरखधंधे का पता लग जाता है। जरा ध्यान से देखिये 31 मई 2017 को प्रभात खबर के पृष्ठ संख्या 21 पर निकाले गये, नीचे कोने में पड़े आईपीआरडी के विज्ञापन को जो जनसंवाद से संबंधित है। जिसमें टेंडर की सारी तिथियां ही समाप्त हो चुकी है और उसे अखबार में प्रकाशित कराया गया। बाद में जब इस पर हंगामा मचा तो जाकर इस संबंध में एक नया विज्ञापन निकाला गया।
अब आप इसी से समझिये कि कनफूंकवों ने कैसे, मुख्यमंत्री रघुवर दास के इमेज को बिगाड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभानी शुरु कर दी है?  पर पता नहीं क्यूं मुख्यमंत्री को कनफूंकवों की प्लानिंग ही सर्वाधिक रास आ रही है, नतीजा सामने है...
जरा मुख्यमंत्री जी आपही बताइये...
• जब आपके द्वारा चलाये जा रहे विकासात्मक कार्यों को आपका ही निदेशक आम जनता तक पहुंचाने में रोड़ा अटका दें, तो फिर आपकी इमेज जनता के बीच कैसे बनेगी, वह भी तब जबकि सरकार के इमेज बनाने के लिए ही, सरकार और जनता के बीच समन्वय स्थापित करने के लिए ही इस विभाग का गठन हुआ और यह विभाग भी आपके ही जिम्मे है, पर वो कौन है कनफूंकवां? जो आपकी इमेज बनाने में पिछले तीन महीने से रोड़ा अटका दिया, आखिर पूछिये आप निदेशक से, वह किसके इशारे पर ऐसा किया और कर रहा है, और अगर वह नहीं बताता है, तो मैं बताने के लिए तैयार हूं।
• पूछिये आप इस निदेशक से कि आखिर किससे इशारे पर 31 मई को गलत विज्ञापन विभिन्न अखबारों में निकाला गया।
• आखिर क्या वजह है कि जो लोग आपको इमेज को बनाने में लगे है, उन्हें साइड कर, ऐसे लोगों से काम लिये जा रहे है, जो आप से पैसे भी ले रहे है और आपकी इमेज का बंटाधार कर रहे है।
भाई सरकार आपका, अधिकारी आपके,  जवाब मांगिये...
पर कनफूंकवे, आपको सच बतायेंगे...
उत्तर होगा – नहीं, कभी नहीं।